Mid day Meal - 1 in Hindi Fiction Stories by Swati books and stories PDF | मिड डे मील - 1

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मिड डे मील - 1

मिड डे मील


1


हरिहर स्कूल की दीवार पर लिखा पढ़ रहा है ----'शिक्षा पर सबका अधिकार हैं' उसने यह बार-बार पढ़ा और अपने दोनों बेटे केशव और मनोहर का हाथ कसकर पकड़ लिया। वह स्कूल के बाहर पहुँचा और चपरासी मनीराम को देखकर मुस्कुराया और पूछने लगा, बड़े सरजी अंदर है तो जाने दो मनीभाई। सुनकर मनीराम थोड़ा गुस्सा हो गया। सुन !हरिहर मैं तेरा भाई नहीं हूँ, वो मैं ज़्यादा पढ़ नहीं सका इसलिए यहाँ चपरासी लग गया। वरना जात-पात में हमारी कोई बराबरी नहीं। कहकर मनीराम पान चबाने लगा । एक बार फ़िर हरिहर ने उसे गुज़ारिश की कि हमें अंदर जाने दें । उसके दोनों बेटे के भविष्य का सवाल है । पहले मनीराम ने अकड़ दिखाई। फिर यह सोचकर कि इसका काम तो बनने नहीं वाला, उल्टा बड़े सरजी की बात सुनने को मिलेगी उसने मुँह बिचकाते हुए कहा, ठीक है, जा ।

बड़े सरजी के ऑफिस के बाहर लगी कुर्सी पर कोई मैडम बैठी है । उसने तीनों को देखा और बोली, क्या काम हैं? जी, वो बड़े सरजी से मिलना था ? उसने ज़वाब दिया । क्यों ? बच्चों का दाखिला करवाना हैं । हरिहर ने प्रार्थना की। मिल लो, एडमिशन होगा या नहीं देखते हैं। उसने हरिहर को ऊपर से नीचे देखते हुए कहा। बच्चों को वहीं छोड़, वह अंदर चला गया। मनोहर डरा सहमा वही बैठ गया। मगर केशव घूमकर पूरा स्कूल देखने निकल गया । वह मैदान में खेल रहे बच्चों को देखता रहा। उसका मन किया कि कहे कोई उसे भी गेंद दे दें । तभी गेंद उसके पास आई और उसने लपककर उठा ली । गेंद लेने आए बच्चे ने उसे गौर से देखते हुए पूछा, नए आये हों? अभी बाबा दाखिला करवाने अंदर गए हैं । उसने मुस्कुराकर ज़वाब दिया । फ़िर वह हर क्लॉस के बाहर से गुज़र रहा था। उसे कक्षा में पढ़ा रहे मास्टरजी की आवाज़ सुनाई दे रही थीं, बच्चों बताओ-- चाँद पर पहला भारतीय कौन गया था ? 'राकेश शर्मा' सबने मिलकर ज़वाब दिया । दो मिनट उसी क्लॉस के बाहर खड़ा रहकर वह आगे बढ़ गया । एक कमरे में लगे कुछ कंप्यूटर उसे छोटे-छोटे टी.वी. लगे । उसे इतने गौर से देखते हुए मास्टर ने अंदर बुलाकर पूछा, तुम्हारा नाम क्या है ? 'केशव' उसने झट से ज़वाब दिया । तुम्हें पता है, भगवान कृष्ण का एक नाम केशव भी हैं। पता है, अम्मा कहती थीं। वाह! तुम्हारी माँ ने तुम्हें बहुत सिखाया हैं। और तुम्हारे बाबा? मास्टर ने सवाल किया । वह अंदर स्कूल में दाखिला करवा रहे हैं । केशव के बोलते समय चेहरे पर ख़ुशी साफ़ झलक रही थीं । तभी घंटी बज गई और सब बच्चे क्लॉस से बाहर आ गये ।

केशव ने देखा, सभी बच्चे दरी पर बैठ रहे हैं और उनके पास खाली डिब्बा है, जिसमे एक माई भोजन डाल रही हैं। उसने थोड़ा पास आकर देखा तो कढ़ी-चावल थें । तभी उसका हाथ पेट पर चला गया, उसे याद गया कि उसे बहुत भूख लगी हैं । उसने कढ़ी को ललचाई नज़रों से देखा, फ़िर हिम्मत कर बोला, माई मुझे भी थोड़े से दे दो । माई ने पूछा, इस स्कूल के नहीं लगते, बाहर से आए हो क्या ? हाँ, बाहर से आया हूँ। बाबा गए है अभी सर के पास। केशव अब भी कढ़ी-चावल ही देख रहा था । पहले इस स्कूल में आ जाओंगे, फ़िर रोज़ यहीं खाना मिलगा । अभी जाओ यहाँ से। कहकर माई आगे बढ़ गई । बहुत भूख लग रही है माई, अभी थोड़े से चावल दे दों । माई का मन किया कि केशव को खाना दे दें। मगर स्कूल के सुपरवाइज़र को देख उसकी हिम्मत नहीं हुई। तभी उसका भाई उसे खींचकर ले गया । और वह जाते-जाते खाते हुए बच्चों को देख रहा था। 'जान छूटी' कहकर माई फ़िर अपने काम में जुट गई ।

केशव बापू आ गये हैं । चल घर चलना हैं। मनोहर उसे खींचते हुए बोले जा रहा था। हरिहर अपने दोनों बच्चों को लेकर स्कूल से बाहर निकल गया । जाते हुए मनीराम की व्यंग्य मुस्कान उसे चुभ गई । और वह चुपचाप अपने बच्चों का हाथ पकड़ अपने घर की तरफ़ जा रहा था। रास्ते में दोनों बच्चों ने पूछा, बाबा कल से स्कूल जायेंगे ?" हरिहर ने कोई ज़वाब नहीं दिया । मगर केशव ज़िद करने लगा। तब उसने कह दिया, थोड़े दिन बाद स्कूल जाना हैं । बच्चों के चेहरे पर ख़ुशी छा गई । केशव ख़ुशी से कूदता हुआ अपने मोहल्ले की चने की दुकान पर चला गया बच्चों के चेहरे की ख़ुशी देख उसकी आँखें गीली हो गई। अब वह इन्हें क्या बताए कि स्कूल में क्या बातें हुई हैं। बच्चों को रमिया काकी के घर छोड़ वह खुद अपना समोसे के ठेले पर आ गया । आज उसके आधे ग्राहक जा चुके थें। उसने ठेला लगाया और किसी ख़रीदार की राह देखने लगा।